विल्हण-रतिलेखा की प्रेम कहानी Vilhan Ratilekha Love Story in Hindi

विल्हण-रतिलेखा की प्रेम कहानी Vilhan Ratilekha Love Story in Hindi
विल्हण-रतिलेखा की प्रेम कहानी Vilhan Ratilekha Love Story in Hindi

चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य के राजकवि विल्हण का उस समय के कवियों, विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ स्थान था। उनका कहना था कि इस संसार में केवल एक ही ऐसा रस है, जो लोहे के आदमी को भी मोम बना देता है और वह हैं 'प्रेम रस'।

राजकवि विल्हण राजा के विश्वासपात्र थे। इसलिए राजा ने राजकुमारी रतिलेखा की शिक्षा-दीक्षा की सारी जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी। किंतु विल्हण अति सुंदरी रतिलेखा को काव्य पढ़ाते-पढ़ाते प्रेम शास्त्र पढ़ाने लगे और एक दिन जब रतिलेखा और विल्हण गंधर्व विवाह करके गंधर्व क्रीड़ा के लिए तैयार थे, तभी राजा ने उन्हें देख लिया और राजा ने तुरंत विल्हण को फांंसी की सज़ा दे दी।

फांसी का तख्त नर-मुण्डों की भूमि पर ख़ड़ा प्रतीत हो रहा था। एक तरफ राजा ऊंचे सिंहासन पर विराजमान थे। बधिकों ने विल्हण से कहा, 'अंतिम बेला आ पहुंची है, अपने इष्ट का स्मरण करो।' राजकवि ने उस समय एक श्लोक पढ़ा जिसका अर्थ था- ''जिसने जीवन के सुखों का संपूर्ण मर्म समझने में बराबर का योग दिया, जिसने वाणी को कोमल शब्द उच्चारण करने की सामर्थ्य दी, जिसने मृत्युलोक में ही स्वर्ग की कल्पना को साकार दिया, उसी तरह रतिलेखा का स्मरण विल्हण करता है- विल्हण के लिए वही चरम आनंद की जननी है।''

फिर वही श्लोक सहस्त्रों मुखों से बार-बार मुखरित होने लगा। रतिलेखा राजा के चरणों पर गिरकर विलाप करने लगी, 'हे राजन, विल्हण के साथ ही राज्य की श्री, सुषमा, सुशीलता सबका अंत हो जाएगा। जीवन दासता से कलंकित होगा, रसराज का आदर खत्म हो जाएगा, जन-जन कुमार्गगामी हो जाएँगे। विल्हण को क्षमा करो, नहीं तो उनकी चिता पर गंधर्व विवाह से उनकी पत्नी बन चुकी रतिलेखा भी जीवित ही भस्म हो जाएगी।

फिर तो राजा को जनता और रतिलेखा के सामने झुकना पड़ा और उन्होंने विल्हण को अभयदान देकर दोनों के प्रेम व वैवाहिक संबंधों को स्वीकार किया। यहीं नहीं, इसके बाद राजा ने विल्हण को 'महाकवि' की उपाधि से भी सम्मानित किया।